अयोध्या का वो मंदिर जहां राम-जानकी विवाह करवाना ही पूजा माना जाता है और जहां राम के कोहबर में जाते खत्म हो जाती है रामायण (br) https://ift.tt/2D7NnjU

शाम सात बजे का वक्त है। अशोक के पत्तों से सजाए गए झूले पर राम-जानकी का रूप धारण किए दो बच्चे झूला झूल रहे हैं। सामने साधु-सन्यासियों की टोली हारमोनियम, ढोलक, झाल और दूसरे वाद्य यंत्रों के साथ पालथी जमाए है और गा रही है-

‘जय रहे अवधेश लनन, मिथलेश लली जी की जय रहे…
पिया संवारों सो है घटा, सिया दामिनी सी छा रही…..
बातें मधुर रस-रहस के आनंद जल बरसा रहे…’

ये सब रात के नौ बजे तक चलता रहा। इस दौरान प्रसाद के तौर पर इलायची बांटी गई और वहां बैठे हर व्यक्ति की हथेली के पिछले हिस्से पर इत्र लगाई गई। ये दृश्य अयोध्या में स्थित बिअहुती भवन मंदिर के अंदर का है। बिअहुती भवन का मतलब हुआ वो भवन जहां अभी-अभी विवाह सम्पन्न हुआ है, जहां विवाह होने वाला है या जहां अक्सर विवाह सम्पन्न होते हैं, लेकिन यहां ये एक मंदिर है जहां राम केवल दूल्हे के रूप में पूजे जाते हैं।

हारमोनियम, ढोलक, झाल और दूसरे वाद्य यंत्रों के साथ पालथी जमाए संतों की टोली।

सावन महीने में हर शाम यहां राम-जानकी को झूला झुलाया जाता है और हर महीने की पंचमी तिथी को राम-सिया का विवाह करवाया जाता है। इस मंदिर या यहां रह रहे चालीस साधुओं के लिए राम की आराधना का यही एक तरीका है। विवाह भवन में रहने वाले, बच्चों का श्रृंगार करके उन्हें राम-सिया जैसा बनाने वाले भोला बाबा उर्फ नरेंद्र नाथ पाठक कहते हैं, ‘ये अयोध्या का अकेला मंदिर है जो राम को दूल्हे के तौर पर पूजता है। हमारे राम को गुस्सा नहीं आता। वो तो हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। हमने और हमारे गुरुओं ने राम को हमेशा एक दूल्हे के तौर पर देखा है। इसके अलावा कुछ नहीं। हम अपने दूल्हे का विवाह करवाते हैं और यही हमारी पूजा है।’

बातचीत करते हुए भोला बाबा हमें मंदिर के अंदर घुमाते हैं। मंदिर में एक विवाह वेदी है जहां राम-जानकी का विवाह होता है और ये गीत-संगीत के माध्यम से होता है। मंदिर के एक हिस्से की तरफ इशारा करते हुए भोला बाबा कहते हैं, ‘विवाह वेदी वाले इलाके को हम जनकपुर मानते हैं। जहां राम और सिया झूला झूल रहे थे वो हिस्सा अयोध्या है। जब विवाह होता है तो वहां से बारात निकलती है और जनकपुर आती है।’

मंदिर में एक विवाह वेदी है जहां राम-जानकी का विवाह गीत-संगीत के माध्यम से होता है।

बिअहुती भवन मंदिर के अहाते में घूमते हुए एक ही मंदिर में अयोध्या और जनकपुर दोनों देखते हुए उस कथन पर विश्वास बढ़ जाता है जिसमें कहा गया है कि राम सबके हैं और सबके राम भी अलग-अलग हैं। इसी अयोध्या से राम को गुस्सैल और आक्रमक बनाकर, दिखाकर विश्व हिंदू परिषद ने एक पूरा आंदोलन चलाया और यही एक मंदिर ऐसा है जो राम को बतौर दूल्हा पूजता है। पूजा के दौरान राम और सीता की सुंदरता को लोक गीतों और रागों की मदद से गाता है। जब हमने बिअहुती भवन मंदिर के वर्तमान महंत वैकुंठ शरण से पूछा कि इस मंदिर की पूजा पद्धति और दूसरों में इतना अंतर कैसे है? तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘राम तो एक ही हैं। जो उन्हें जिस रूप में चाहता है, उस रूप में पूजता है। याद रखने वाली बात ये हैं कि आप जिस रूप में राम की पूजा करेंगे वो उसी रूप में आपको मिलेंगे।’

इस मंदिर में कोहबर भी है, जिसका हिंदी पट्टी खासकर बिहार और यूपी में होने वाले शादियों में खास महत्व है। मंदिर में बने कोहबर की तरफ इशारा करते हुए भोला बाबा कहते हैं, ‘हमारे लिए रामायण वहीं खत्म हो जाती है जब राम शादी के बाद कोहबर में जाते हैं।’ इसकी वजह पूछने पर वो कहते हैं, ‘इसके बाद के रामायण में जिस राम का जिक्र मिलता है। उनके द्वारा किए गए जिन कार्यों का जिक्र मिलता है वो हमारे राम जैसे नहीं हैं।’

मान्यता है कि सीता से विवाह के बाद राम जनकपुर में ही रह गए।

इस मंदिर की एक मान्यता यह भी है कि जिस तरह से पार्वती से विवाह करने के बाद भगवान शंकर घर जमाई बनकर कैलाश पर रह गए। जिस तरह से लक्ष्मी को पाने के बाद विष्णु क्षीर सागर में ही रह गए। ठीक उसी तरह से जनक की बेटी सीता से विवाह के बाद राम जनकपुर में ही रह गए। अयोध्या वापस गए ही नहीं।

इस मंदिर परिसर की दीवारों पर की गई तरह-तरह की चित्रकारी और परिसर की भव्यता को निहारते हुए हमारी मुलाकात मंदिर के एक युवा साधु सुनील शरण से हुई। सुनील यहां पिछले दस साल से रह रहे हैं और इनके मुताबिक मंदिर ने देश के एक बड़े इलाके में राम-सीता को पूजने के तरीके में बदलाव ला दिया है। वो बताते हैं, ‘इस मंदिर से जुड़े हजारों भक्त देशभर में फैले हैं। हम और हमारी टीम सालभर घूम-घूमकर उनके यहां पंचमी को राम-सीता विवाह करवाते हैं।’

इस मंदिर की मान्यता है कि राम के पूरे व्यक्तित्व में जो सबसे सुंदर पल है वो उनके जनकपुर जाने और दूल्हा बनने का है। अपनी इन्हीं मान्यताओं के आधार पर अयोध्या का बिअहुती भवन मंदिर उन्हें दूल्हे के तौर पर पूजता है और अपने भक्तों से पूजने का आग्रह करता है।

श्री बिअहुती भवन मंदिर का द्वार।

हर समाज, हर देश, हर वर्ग अपने-अपने हिसाब से मान्यताएं बनाता है। ये अलग बात है कि हिंदी पट्टी में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस का खास महत्व है लेकिन ये भी सच है कि पूरे देश में करीब तीन सौ रामायण हैं। अब आखिर में आपको उस गीत की चार लाइनें बताते हैं जो राम-जानकी विवाहोत्सव के दौरान इस मंदिर के साधू-संत अक्सर गाते हैं। गीत के बोल हैं-

‘अवध नगर से जनकपुर आए वर सुंदर हे
मदन मोहन छवि निरखत लिए हिये अंदर हे
अनुपम सोहे सिर मौर, भूषण, पितांबर हे
अलक कुटिल भौहां, धनुषम कमल नयन सर हे’

ये भी पढ़ें

अयोध्या के तीन मंदिरों की कहानी:कहीं गर्भगृह में आज तक लाइट नहीं जली, तो किसी मंदिर को 450 साल बाद भी है औरंगजेब का खौफ

राम जन्मभूमि कार्यशाला से ग्राउंड रिपोर्ट:कहानी उसकी जिसने राममंदिर के पत्थरों के लिए 30 साल दिए, कहते हैं- जब तक मंदिर नहीं बन जाता, तब तक यहां से हटेंगे नहीं
अयोध्या से ग्राउंड रिपोर्ट:मोदी जिस राम मूर्ति का शिलान्यास करेंगे, उस गांव में अभी जमीन का अधिग्रहण भी नहीं हुआ; लोगों ने कहा- हमें उजाड़ने से भगवान राम खुश होंगे क्या?



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
मंदिर में एक विवाह वेदी है जहां राम-जानकी का विवाह होता है और ये गीत-संगीत के माध्यम से होता है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/316fZSy

Comments

Popular posts from this blog

'Shuru hote hi khatam!': Internet roasts Pakistan after early exit{br} https://ift.tt/4dRweE9